हंगामा क्यों है बरपा ! पद्मावती
Karni Sena Rajasthan |
Kalyan Singh Kalvi |
सम्मेलन करके फ़िल्म 'पद्मावत' को रिलीज़ न होने देने की बात दोहराई.
उन्होंने कहा, "देश में ये फिल्म नहीं लगनी चाहिए. बैन बैन और सिर्फ बैन. इतिहासकार अरविंद सिंह और प्रोफेसर कपिल कुमार देखने गए थे. जब उन्होंने बताया कि क्या देखा तो गला सूख गया."
कालवी ने कहा, "हमाम में बैठे खिलजी के स्वप्न में दीपिका आती हैं. यह फ़िल्म का सीन है. रणवीर और दीपिका रियल लाइफ में कुछ भी करें लेकिन पद्मावती और खिलजी नहीं कर सकते."
जब कालवी से पूछा गया कि अहमदाबाद में मंगलवार को हुई तोड़फोड़ और आगज़नी के लिए क्या वह माफ़ी मांगते हैं तो उन्होंने कहा, "हां, मैं माफ़ी मांगता हूं, मेरी मां पद्मावती से जिसकी 37वीं पीढ़ी होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है. 25 तारीख आएगी और चली जाएगी, लेकिन पद्मावत को नहीं आने देंगे."
कालवी के अनुसार गुजरात और राजस्थान में डिस्ट्रिब्यूटर्स ने फ़िल्म लगाने से मना कर दिया है.
इस दौरान कालवी ने मीडिया को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, "मेरी गिरफ़्तारी से पहले यह अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस है. मुंबई में गिरफ़्तारियां चल रही हैं. जयपुर में मेरा घर-परिवार है. इसलिए, बंबई से वापस दौड़कर आया हूं."
कालवी ने कहा, "मंगलवार को मैं गांधीजी के कर्म स्थल पर था. वहां मैंने उनसे विनती की. तुमने अंग्रेज़ों को हटा दिया था हम पद्मावत को हटाने के लिए लड़ रहे हैं. मैं नहीं मानता कि इसमें किसी का भी कोई दोष है. दोष केवल भंसाली का है."
कालवी ने भंसाली की फ़िल्म 'गोलियों की रासलीला रामलीला' के दौरान हुए विवाद का ज़िक्र करते हुए कहा, "गुजरात में कोई ऐसा ज़िला नहीं है जहां 'रामलीला' के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज नहीं है."
उन्होंने कहा, "सरकारें चिंतित हैं. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का पालन भी करना होगा. गुजरात और महाराष्ट्र में 200 के आसपास गिरफ़्तारियां हो चुकी हैं. जोश में होश खो देने वाली स्थिति क्यों बन गई."
फ़िल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली की फ़िल्म 'पद्मावत' को लेकर देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध हो रहा है.
उत्तर भारत में कई शहरों पर धारा 144 लगाई गई है.
लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब भंसाली की किसी फ़िल्म को लेकर विवाद पैदा हुआ हो.
अगर उनकी पिछली कई फ़िल्मों पर नज़र डालें तो लगभग हर फ़िल्म ने विवाद का सामना किया है.
आइए जानते हैं कि भंसाली की वो फ़िल्मों कौन सी हैं जिन पर विवाद हुआ और इसकी वजह क्या थी?
भंसाली की आगामी फ़िल्म 'पद्मावत' का ट्रेलर जारी होने के बाद से ही इस फ़िल्म पर विवाद शुरू हो गया था.
फ़िल्म की रिलीज़ से ठीक पहले अहमदाबाद और कानपुर में सिनेमाघरों के बाहर हिंसक विरोध की घटनाएं सामने आई हैं.
भंसाली पर आरोप है कि उन्होंने जान-बूझकर ऐसी फ़िल्म बनाई जिससे एक समुदाय विशेष की भावनाएं भड़कीं.
हालांकि, विवाद भड़कने के बाद फ़िल्म का नाम बदलकर 'पद्मावती' से 'पद्मावत' कर दिया गया है.
इसके साथ ही फ़िल्म के कुछ सीन्स भी काटे गए हैं. लेकिन इसके बाद भी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है.
17वीं शताब्दी के शासक पेशवा बाजीराव द्वितीय पर बनी फ़िल्म को लेकर भी भंसाली को विवादों का सामना करना पड़ा था.
इस फ़िल्म में भंसाली ने फ़िल्म के दो किरदारों काशीबाई और मस्तानी के बीच एक गाना पिंगा फ़िल्माया था.
ये कहा गया था कि पेशवाई में शाही महिलाएं इस तरह डांस नहीं करती थीं. इंदौर राजघराने ने भी इस फ़िल्म पर एतराज जताया था.
यही नहीं, फ़िल्म में काशीबाई और मस्तानी यानी प्रियंका और दीपिका पादुकोण कई बार एक ही फ्रेम में नज़र आती हैं.
इस पर पेशवा बाजीराव के वंशजों का कहना है कि बाजीराव और मस्तानी की मुलाकात सिर्फ़ एक बार हुई थी.
लेकिन इतने विवादों के बाद भी जब ये फ़िल्म रिलीज़ हुई तो फ़िल्म ने भारी कमाई की.
बाजीराव मस्तानी से पहले भंसाली ने दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह के साथ 'रामलीला' फ़िल्म बनाई थी.
इसका नाम आने के बाद से ही फ़िल्म के नाम को लेकर ऐसा विवाद पैदा हुआ जिससे भंसाली को फ़िल्म का नाम बदलकर 'गोलियों की रासलीला' रखना पड़ा.
इसके साथ ही इस फ़िल्म में मुख्य किरदारों के सरनेम 'जडेजा' को राजपूत समुदाय ने विरोध किया जिसके बाद 'सनेडा' और 'राजाडी' सरनेम इस्तेमाल किए गए.
फ़िल्म में इस्तेमाल की गई रवींद्रनाथ टैगोर की कविता 'मोर बनी थनघट करे' के गुजराती अनुवाद को लेकर भी विवाद पैदा हुआ था.
भंसाली के फ़िल्मी करियर की सबसे ख़ास फ़िल्मों में से एक फ़िल्म देवदास के एक गाने 'डोला रे डोला रे...' को लेकर विवाद पैदा हुआ था.
क्योंकि 'देवदास' पर असली उपन्यास में पारो और चंद्रमुखी की मुलाकात नहीं है.
लेकिन फ़िल्म में माधुरी दीक्षित और ऐश्वर्या राय ने एक साथ 'डोला रे डोला...' गाने पर डांस किया है.
भंसाली पर जानबूझकर ऐसे विषय चुनने का आरोप लगाया जाता है जिसकी वजह से विवाद पैदा हो.
लेकिन इन विवादों के बाद भी उनकी गिनती दुनिया के उन निर्देशकों में की जाती है जो अपनी ख़ास सिनेमेटोग्राफ़ी के लिए चर्चित हैं.
उनकी फ़िल्मों में किसी एक्टर या एक्ट्रेस की जगह उनका कैमरावर्क फ़िल्म का असली हीरो होता है जिसके दम पर उनकी फ़िल्म करोड़ों का कारोबार करती है.
भंसाली का कैमरा भारत के राजघरानों के उस वैभवशाली इतिहास को 70 एमएम के पर्दे पर ज़िंदा करता है जिसका ज़िक्र किताबों में हुआ करता है. (Source Rediff & BBC)