बहादुर खां : सिसौना
बहादुर खां |
प्रारंभिक जीवन : हमारे पास बहादुर खां की कोई वास्तविक तस्वीर नहीं है, उपरोक्त तस्वीर बहादुर खां की एक काल्पनिक तस्वीर है जो की बुज़ुर्गों से मिली जानकारी के आधार पर बनाई गई है ! इस दुनिया में बहादुर खां का वजूद १८०० ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में आया था ! बहादुर खां के पिता का नाम अली हुसैन था ! अली हुसैन के नाम कोई खास उपलब्धि नहीं थी इसीलिए उनका नाम का ज़िकर इतिहास के पन्नो से बहुत कम मिलता है ! मगर बहादुर खां के बहादुरी के कारनामो का ज़िक्र हमें अपने बुज़ुर्गों से सुनने को मिलता है ! कहा जाता है की बहादुर खां, गरीबों से काफी हमदर्दी रखा करते थे ! बहादुर खां की गरीबों से हमदर्दी इस हद तक थी की कई बार वो उनके लिए लूट मार भी किया करते थे मगर हर बार अमीरों की जायदाद लूटकर गरीबों को बाट दिया करते थे ! जिस वजह से कई बार उनको जेल भी जाना पड़ा था! बहादुर खां का नाम बहादुर खां कैसे हुआ इसके पीछे भी एक दिलचस्प वाक़्या है! १८५७ की क्रांति के निकट ईस्ट इंडिया कंपनी के एक जिलाधीश की एक अँगरेज़ लड़की का एक घोडा खो गया था ! तब उस वक़्त की अँगरेज़ सरकार द्वारा जेल में बंद बहादुर खां से उस घोड़े को ढूंढ़ने को कहा गया ! बहादुर खां ने अपनी चतुराई और बहादुरी से उस घोड़े को ढूंढ़कर उस अँगरेज़ लड़की के सुपुर्द कर दिया ! उनके इस बहादुरी के कारनामे को देखते हुए अंग्रेज अधिकारियों ने उनको उनकी पसंद के ४ गाँव का चुनाव करने का मौका दिया ! जिसकी मिल्कियत और सरपरस्ती का ज़िम्मा सिर्फ उन्ही को देना का वादा किया ! साथ ही साथ ये भी वादा किया गया की आपके खानदान की हर पीढ़ी से एक व्यक्ति को सरकारी पद दिया जायेगा !
तब बहादुर खां ने सिसौना क्षेत्र के भूँडो को देखते हुए इस गाँव को चुना ! जिनमें उकसी, शाहगढ़, कासमपुर और सिसौना गाँव शामिल थे !
बहादुर खां की मृत्यु किस तारीख में हुई इसकी सही पुष्टि हमारे पास नहीं है मगर जो जानकारी गाँव के बुज़ुर्गो से मिलती है उसके अनुसार उनकी मृत्यु १८५७ के स्वतन्त्रा संग्राम के आस पास की मिलती है !
आगामी पीढ़ियाँ : बहादुर खां के कई पुत्र थे उनके सबसे बड़े बेटे का नाम इनायत अली खां और सबसे छोटे बेटे का नाम रहमत अली खां था ! रहमत अली खां एक इस्लामिक विद्वान थे ! रहमत अली खां के पुत्र, बुलाकी नम्बरदार (अख्तर हसन) के नाम से इलाक़े में मशहूर हुए ! जो कि उस समय ५०० बीघा ज़मीन के मालिक थे और एक प्रसिद्ध हकीम और इस्लामिक विद्वान थे! वहीं दूसरी तरफ बहादुर खां के बड़े पुत्र मौलवी इनायत अली खां थे जो १८०० बीघा ज़मीन के मालिक थे! इनायत अली खां अंग्रेज़ो से काफी नफरत करते थे ! कहा जाता है कि जब ज़िले में दूसरा कलेक्टर आया तो उसे इस खानदान से मिलने की जिज्ञासा हुई उस समय बहादुर खां के बड़े पुत्र इनायत अली खां ही गाँव के नम्बरदार थे ! उस दौर में खासकर इस्लाम धर्म के लोगों में विज्ञान और अंग्रेजी की पढ़ाई को अच्छा नहीं समझा जाता था ! क्यूंकि विज्ञान को क़ुरान और हदीस के खिलाफ व अंग्रेजी को अंग्रेज़ो की ज़बान समझा जाता था! अतः इनायत अली खां ने अँगरेज़ ऑफिसर से मिलने से इंकार कर दिया! जिसके कारण उस अँगरेज़ ऑफिसर ने इसको अपनी बेइज़्ज़ती समझा तथा पिछले ज़िलाधीश द्वारा जारी किये गए सरकारी नौकरी देने वाले आदेश को उसने ख़ारिज कर दिया!
शायद इसी नकारात्मक सोच की वजह से मुस्लिम समाज अंग्रेजी और विज्ञान क्षेत्र में पीछे है! इसे उस समय के मुस्लिमों की मूर्खता ही कहा जा सकता है!
इनायत अली खां के पुत्र मोहम्मद हुसैन हुए ! मोहम्मद हुसैन पेशे से अपनी खेती बाड़ी देखते थे और दिनी तालीम लेने पर उनका खास ध्यान था! मोहम्मद हुसैन के ४ बेटे थे जिनमे से सबसे बड़े मौलाना अनवार हुसैन अपनी ननिहाल की जायदाद सँभालने के लिए पीपलसाना जाकर बस गए थे! मोहम्मद हुसैन के दूसरे बेटे ठेकेदार अबरार हुसैन के नाम से सिसौना इलाक़े में मशहूर हुए! जो उस समय जिला परिषद् के सदस्य भी मनोनीत हुए थे, ठेकेदार अबरार हुसैन अपने इलाक़े के इकलौते लाइसेंसदार थे और ३०० बीघा ज़मीन के मालिक थे! मोहम्मद हुसैन के बाकी पुत्रों में बहार हुसैन व निसार हुसैन थे, इनमे बहार हुसैन मिजाज़ से काफी सीधे और सरल इंसान थे जबकि निसार हुसैन मिजाज़ से तेज़ और चतुर इंसान थे! बहार हुसैन के भी दो पुत्र हुए - मुंशी ज़ुल्फ़िकार हुसैन और मुंशी अंसार हुसैन !
मुंशी अंसार हुसैन अपनी शादी के बाद संभल जाकर बस गए थे और वहीँ सुपुर्दे खाक हुए! उनके बड़े भाई मुंशी ज़ुल्फ़िकार हुसैन ये नहीं चाहते थे की मुंशी अंसार हुसैन गाँव छोड़कर जाएँ, मगर वो कहावत है की वक़्त इंसान से कब क्या करवा दे कुछ नहीं कहा जा सकता! कई दशक बाद वक़्त के मुसाफिर मुंशी ज़ुल्फ़िकार हुसैन भी संभल आये जब उनके छोटे बेटे का अपनी सरकारी नौकरी में संभल शहर को तबादला हो गया था! और मुंशी ज़ुल्फ़िकार हुसैन भी संभल में अपने छोटे भाई के पास ही सुपुर्दे खाक हुए!
मुंशी ज़ुल्फ़िकार हुसैन के छोटे पुत्र आशकार हुसैन आज भी मोहल्ला पैपटपुरा दीपा साराय संभल में रहते हैं ! जो की गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज संभल से पुस्तकालय अध्यक्ष के पद से रिटायर हो चुके हैं !